आयुर्वेद में इसका उपयोग कई स्थितियों में आंतरिक और बाह्य दोनों तरह से किया जाता है।
यह स्वाद में कसैला, पचने में हलकी, गर्म और भेदी प्रकृति की होती है। वात और कफ दोष को संतुलित करती है।
उपयोग
यह विशेष रूप से गुर्दे की पथरी पर कार्य करती है, गुर्दे से पथरी को निकालने में मदद करती है और फिर से पथरी बनने को रोकती है।
यह पाचन में सुधार करती है, कब्ज, सूजन और अत्यधिक डकार से राहत देता है। अति अम्लता की स्थिति में इसके सेवन से बचें।
यह वजन घटाने में मदद करती है।
यह पेट के आसपास की चर्बी को कम करती है इसके लिए इसका पेस्ट शरीर पर लगाएं और इसे आहार में शामिल करें।
यह कोलेस्ट्रॉल के सामान्य स्तर को बनाए रखने में मदद करती है।
श्वसन विकारों, दमा, खांसी, सर्दी, राइनाइटिस, साइनसाइटिस और सांस लेने में कठिनाई में यह उपयोगी है।
यह सूखे बवासीर में उपयोगी है। खूनी बवासीर वाले व्यक्ति को इसके सेवन से बचना चाहिए।
सूजन की स्थिति में इसे आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से इस्तेमाल करना चाहिए।
पीसीओडी में, देरी से और कम मासिक धर्म, गर्भाशय में गांठे आदि स्थितियों में इसे आहार शामिल करें। भारी माहवारी की स्थिति में इसका सेवन ना करे।
यह फैटी लीवर की स्थिति को ठीक करने में सहायक है।
अधिक वजन के साथ मधुमेह भी जिन्हें है ऐसे व्यक्ति को इसे आहार में शामिल करना चाहिए।
इसका सेवन कीन्हे नही करना चाहिये?
गाउट, रक्तस्राव विकार, जलन और अति अम्लता जैसी स्थितियों में इससे बचना चाहिए।
कुल्थी दाल का उपयोग कैसे करें?
कुल्थी दाल या इसके पाउडर का उपयोग करके सूप, दाल और खिचड़ी बनाई जा सकती है।
इसके चूर्ण को शरीर पर लगाएं और इससे मालिश करें इससे वजन घटाने में मदद मिलेगी और अत्यधिक पसीने से राहत मिलेगी। इसके लेप को जोड़ों के दर्द और सूजन में स्थानीय रूप से लगाएं।
I am an ayurvedic practitioner with experience of more than a decade,
I have worked with best ayurvedic companies and now with the purpose of reaching out people to make them aware about ayurveda which is not just a system of treatment but a way of living to remain healthy
View more posts