
🌷आयुर्वेद मे दालों के बारे में विस्तार से वर्णन है, उनके स्वतंत्र उपयोग, लाभ और दुष्प्रभावों का विस्तृत वर्णन है।
👉सोया और दाल जैसे राजमा,छोले या सफेद चने, मटर, और तूर दाल – को “भारी” बीन्स के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
👉इसका क्या मतलब है? अगर किसी की पाचक शक्ति या पंचकग्नि कम है, या कोई कम शारीरिक परिश्रम करते है, तो उन्हें इन दालों का सेवन नहीं करना चाहिए।
👉लक्षण जो आपको इन बड़ी फलियों से बचने के लिए चेतावनी देते हैं – यदि आपको गैस,पेट फूलना,पेट दर्द, कब्ज, दस्त, अपच, थकान, सिरदर्द, त्वचा की समस्याएं, सूजन रहती है तोह इनका सेवन ना करे।
👉 सोयाबीन शरीर के स्रोतसो को अवरूद्ध करता है इसका उगयोग भी उपयुक्त नही है।
👉मूंग की दाल को सबसे अच्छी दाल माना जाता है और उसके बाद मसूर की दाल आती है। लेकिन इन दोनों को हमेशा पका कर ही खाना चाहिए।
अगर आपको मूंग की दाल भी पचती नहीं है तो इन्हें पहले भून लें और फिर पकाए।
👉दाल को हमेशा पकाने से पहले भिगोए।
👉दाल में प्याज, लहसुन, टमाटर का प्रयोग न करें।
,👉 दाल को हल्दी ,सेंधा नमक के साथ पाक के फिर इसमें घी,जीरा का तड़का लगाए।