अर्टिकारिया या पित्ती(urticaria)

☘️यह एक ऐसी स्थिति है जहां शरीर के विशेष भाग या पूरे शरीर की त्वचा पर चकत्ते दिखाई देते हैं जो कुछ घंटों, कुछ हफ्तों से लेकर कभी-कभी पूरे वर्ष तक रह सकते हैं।
☘️यह जीवन के लिए खतरा नहीं है लेकिन इसे नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए और इसका इलाज जल्द से जल्द करा लेना चाहिए।
☘️आधुनिक विज्ञान के अनुसार पित्ती शरीर की विशेष भोजन, दवाओं, मौसमी परिवर्तन या अन्य चीजो के लिए एलर्जी की प्रतिक्रिया है।
इसके उपचार के लिये एंटीहिस्टामाइन, हिस्टामाइन ब्लॉकर, कॉर्टिकोस्टेरॉइड देता है जो लक्षणों में राहत देते है लेकिन समस्या का इलाज नहीं करते है और शरीर की प्रतिरक्षा को भी कम करते है।
☘️पित्ती को आयुर्वेद के माध्यम से प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है
☘️आयुर्वेद के अनुसार पित्ती तीनों दोषों के बिगड़ने के कारण होती है।
☘️आयुर्वेद में यह प्रमुख दोषों के अनुसार 3 प्रकार का हो सकता है जो शीतपित्त, उदर्द और कोठ हैं।
🌷उदर्द️-यह कफ प्रधान स्थिति है यह ज्यादातर सर्दी और बसंत के मौसम में दिखाई देता है।
🌷कोठ ️इसमें पित्त दोष में प्रधान होता है यह वर्षा ऋतु में प्रकट होता है। खट्टा, नमकीन और किण्वित भोजन के अधिक सेवन से पित्त बढ़ जाता है। बार-बार एसिडिटी और गुस्सा भी पित्त असंतुलन का कारण बनता है
🌷शीतपित्त -इसमें वात दोष में प्रमुख है, यह किसी भी समय प्रकट होता है यह अत्यधिक ठंडे पदार्थो के सेवन और ठंडे स्थान में रहने के कारण होता है।
🌻अर्टिकेरिया के कारण
☘️️कारणात्मक कारकों का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पूर्ण इलाज केवल कारणों को रोकने या उनसे दूर जाने के बाद ही संभव है।
👉अत्यधिक नमक, तीखा और खट्टा भोजन करना।
👉सरसों का अधिक सेवन करना।
👉ठंडा खाना और ठंडा पेय पीना।
👉असंगत भोजन करना या प्रतिकूल आहार लेना।
👉नहाने या व्यायाम करने के तुरंत बाद ठंडी हवा के संपर्क में आना।
👉शरीर के तापमान में अचानक बदलाव होना।
👉ठंडी हवा में रहना।
👉दिन में सोना।
👉देर रात तक जागना।
👉दवा से उल्टी को वेग को दबाना।
👉कीड़े का काटना।
उपरोक्त कारणों से वात और कफ बढ़ जाते हैं और वे पित्त के असंतुलन का कारण भी बनते हैं, फिर वे पूरे शरीर में फैल जाते हैं और चकत्ते और अन्य लक्षण पैदा करते हैं।
🌻पित्ती के वास्तविक प्रकटन से पहले के लक्षण (प्रोड्रोमल लक्षण)
☘️अत्यधिक प्यास, स्वादहीनता, जी मिचलाना, थकान, शरीर में भारीपन और आंखों का लाल होना।
🌻मुख्य लक्षण🌻
त्वचा पर चकत्ते
त्वचा की लाली
खुजली
चुभन
जलन
मतली
उल्टी
बुखार
🌻पित्ती के लिए आयुर्वेदिक उपचार।
आयुर्वेद में तीन चरणों का पालन किया जाता है
1.कारक कारकों से बचें
2.पंचकर्म से शरीर शुद्धि
3.दोषो की स्थिति के अनुसार औषधि
पित्ती के इलाज के लिये वैद्यसे परामर्श करे और चिकित्सा ले ।
🌻कुछ घरेलू उपाय
-✅ नहाने से पहले नियमित रूप से सरसों का तेल लगाएं।
✅- सरसों के तेल में सेंधा नमक मिलाकर शरीर पर लगाएं।
✅एक उंगली मोटी और लंबी गिलोय की डंडी को 1 गिलास पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी 1/4 गिलास न रह जाए, छान लें और मिश्री डालकर सुबह खाली पेट पियें।
✅- काली मिर्च को सुबह घी के साथ लें.
✅त्रिकटु का सेवन शहद या दूध के साथ करें।
✅हल्दी, काली मिर्च और घी को मिलाकर लें।
✅अदरक का रस गुड़ के साथ लें।
✅मुलेठी का पेस्ट और घी लगाएं।
✅1 गिलास पानी में अदरक उबाल लें, पानी को घटाकर 1/4 कर दें, गुड़ डालें और इस पानी को छान लें, सुबह इसे पी लें।
✅गुलाब जल लगाएं
✅गिलोय, नीम, मुलेठी, आंवला, दूर्वा, हल्दी आदि जड़ी-बूटियों का प्रयोग सहायक होता है।
✅पुराने चावल,मूंग दाल , करेला, परवल, अनार, लौकी, काली मिर्च, घी को आहार में शामिल करें।
✅कोकम शरबत, खास शरबत, दूर्वा रस आदि लें।
✅दूध और दुग्ध उत्पादों के अत्यधिक उपयोग से बचें।
✅शराब से बचें।
✅अत्यधिक चीनी से बचें।
✅शिमला मिर्च, बैंगन, टमाटर, तैलीय और तले हुए खाद्य पदार्थों के नियमित सेवन से बचें।